नुक्कड़ नाटक का महत्व

किसी समसामयिक समस्या या सामाजिक प्रश्न पर लोगों के बीच आम जागरूकता को जन्म देने के लिए नुक्कड़ नाटक एक बेहतरीन माध्यम हैं. नाट्य प्रस्तुती के द्वारा लोगों का ध्यान आकर्षित करना इसका मुख्य उद्देश्य होता हैं ताकि इच्छित सुधार और बदलाव की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया जाए. अमूमन स्ट्रीट प्ले (नुक्कड़ नाटक) खुली जगह पर प्रस्तुत किया जाता है यही वजह है कि दर्शकों के लिए बैठने की कोई व्यवस्था नहीं होती है.अक्सर लोग खड़े होकर घेरा बनाकर इस प्रदर्शनी को देखते है ऐसी स्थिति में कोई लम्बा नाटक दिखाना सम्भव नहीं होता हैं. चलते राह लोग कुछ समय के लिए खड़े होकर इसे देखकर अपनी राह निकल जाते हैं. तमाशे के साथ ही एक सामाजिक संदेश लोगों तक पहुचाने का काबिलियत माध्यम की आत्मा हैं.

क्या होता हैं नुक्कड़ नाटक का अर्थ 

नुक्कड़ नाटक परम्परागत रंगमंचीय नाटकों से अलग हैं. यह रंगमंच पर नहीं खेला जाता, जैसा कि इसके नाम से ही प्रतीत होता हैं कि इसका गली मोहल्लों के नुक्कड़ पर प्रदर्शन किया जाता हैं. इसकी रचना किसी एक लेखक द्वारा होती हैं.वर्तमान समय में समाज और देश की समस्याओं को आधार बनाकर उनका मंचन करके लोगों तक संदेश दिया जाता हैं. सफदर हाशमी ने भारत में आधुनिक नुक्कड़ नाटक को लोकप्रिय बनाया, इसलिए सफदर हाशमी के जन्म दिवस 12 अप्रैल को देशभर में राष्ट्रीय नुक्कड़ नाटक दिवस के रूप में मनाया जाता हैं.

नुक्कड़ नाटक का महत्व 

जनता से जुड़ी समस्याओं और उनके समाधान पर आधारित अधिकतर नुक्कड़ नाटकों का मंचन किया जाता हैं कई कम्पनियां अपने उत्पादों के प्रचार प्रसार के लिए इस विधा का प्रयोग करती हैं. चुनाव के समय में कई राजनीतिक दल मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए नुक्कड़ नाटकों का सहारा लेते हैं.आज भी अनेक कस्बों में पारंपरिक लोक माध्यमों का प्रचलन हैं. इन दिनों इनका प्रदर्शन अनेक पौराणिक कथा व किवदंतियों के आधार पर प्रदर्शन करते हैं तथा वहां के लोगों का मनोरंजन करने का कार्य करते हैं.

नुक्कड़ नाटक का सामाजिक सरोकार

नुक्कड़ नाटक को अँग्रेजी में ‘स्ट्रीट प्ले’ (Street Play) के रूप में अधिकतर लोग जानते हैं कुछ लोग इसे चौराहा नाटक भी कहते हैं. अभी तक सर्वमान्य रूप से इसके नाम को स्वीकार नहीं किया गया हैं. अपितु  फैक्ट्री के गेट पर, किसी पार्क गली मुहल्ले  के पास जहाँ गाँव नगर के आम आदमी अक्सर मिलते हैं. इन्ही स्थानों पर आयोजित छोटे नाटकीय कार्यक्रमों को नुक्कड़ नाटक का नाम दिया जाता हैं. इस प्रकार के छोटे छोटे आयोजन समाज में जागृति फैलाने के दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण होते हैं. तत्कालीन समय की राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, धार्मिक विषयों की समस्याओं और उनके हल को एक छोटे से नाटक के द्वारा आमजन तक आसानी से संदेश को पहुचाया जा सकता हैं. स्वच्छ भारत अभियान, रक्तदान जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा देने में नुक्कड़ नाटक अहम भूमिका निभा सकते हैं.

नुक्कड़ नाटक का इतिहास

भारत में नाटक का इतिहास सदियों पुराना हैं. प्राचीन समय में लोग अपने जीवन का निर्वहन करने के लिए शिकार आदि पर निर्भर थे. भोजन पकने और खाने के बाद वे मनोरंजन के लिए छोटे नुक्कड़ नाटक किया करते थे. एक गोल घेरा बनाकर बस्ती के लोग अपने अभिनेताओं के अभिनय को देखकर आनन्द की प्राप्ति करते थे, उनके नाटकों का विषय तत्कालीन कथानक व घटनाएं ही हुआ करती थी.

राम जी के पुत्र लव कुश के नाटक बड़े विख्यात थे, जिन्हें कुशीलव के नाम जाना जाता हैं. ये रामायण काव्य को जगह जगह जाकर लोगों को गाते सुनाते थे. भारत ने नाट्यशास्त्र में दस तरह के रूपकों का वर्णन मिलता हैं. आधुनिक भारतीय नाटकों का प्रचलन इन्ही 10 रूपकों में एक वीथि नाटकम से माना जाता हैं.

मध्यकाल नुक्कड़ नाटक के विकास का अहम दौर था, इस समय नाटकों का विषय तत्कालीन घटनाओं से हटकर धार्मिक हो गया. इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी और स्पेन जैसे पश्चिमी देशों में बाईबिल की घटनाओं पर आधारित नाट्य किये जाने लगे,  अब लोगों के आने जाने के साधनों के विकास के साथ ही बड़ी आबादी के  स्थानों के चौराहों  मैदानों में रात की रोशनी में   नाटक प्रस्तुत किये जाने लगे. भारतीय नाट्य विधा में इस दौर ने नाटक में रात्रि के मंचन व प्रकाश के अध्याय को जोड़ा.

नुक्कड़ नाटकों का आधुनिक दौर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय कौमी तरानों, प्रभात फेरियों और विरोध के जुलूसों के रूप में देखा जाने लगा. इन माध्यमों के जरिये क्रांतिकारी जनता को जागृत कर ब्रिटिश सत्ता को झुकाने में सफल हुए थे. आज के समय में इनकी विषय वस्तु राजनीति, चुनाव व कम्पनियों के प्रचार तक सीमित हो गया हैं.

नुक्कड़ नाटकों के लोकप्रिय विषय

तत्कालीन समय की पोलिटिकल सोशियल या किसी कल्चर इशू जिनका आम जन के साथ सीधा जुड़ाव होता है उन्हें नुक्कड़ नाटकों के लिए उठाया जाता हैं. इन नाटकों में उस समस्या का प्रस्तुतिकरण इनके नकारात्मक प्रभाव तथा समुचित उपाय को नाटक के द्वारा दिखाने का प्रयास किया जाता हैं. कई धर्मों में व्याप्त बड़ी कुरीतियों और मान्यताओं का प्रदर्शन भी इन स्ट्रीट प्ले में किया जा सकता हैं.

गलत रिवायत का विरोध करने के साथ ही उसके स्थान पर आदर्श व्यवस्था क्या अपनाई जा सकती हैं यही नुक्कड़ नाटक की आत्मा होती हैं जिसके इर्द गिर्द इसका प्रदर्शन किया जाता हैं. समय के साथ साथ इसके स्वरूप भी बदले हैं कभी यह किस्से कहानियों पर टिकी थी तो कभी राजनीति विचारधारा या धर्म को लेकर नाट्य प्रदर्शन किये जाते रहे हैं.

आज की कर्मिशयल दुनियां में वैसे तो मनोरंजन के तमाम साधन उपलब्ध हो गये हैं, मगर फिर भी किसी न किसी स्वरूप में इस माध्यम ने स्वयं को जिन्दा रखने में सफलता पाई हैं. कई व्यापारिक कम्पनियां आज भी अपने प्रोडक्ट के प्रमोशन में इस तरह के नुक्कड़ नाटकों का सहारा लेने लगी हैं. बहुविध रूप और रंग तथा आम लोगों के इसके सीधे जुड़ाव के कारण नुक्कड़ नाटक की प्रभावशीलता और स्वीकार्यता भी बढ़ी हैं.

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